Seminar on Bhakti Kal Evam Bhartiya Samaj
Organised By
SNDT Women’s University, Mumbai In Collaboration with Maniben Nanavati Women’s College
Venue: Juhu Campus, SNDT Women’s University
04th September 2023
Introduction:
महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, भारतीय ज्ञान, संस्कृत एवं योग केंद्र तथा मणिबेन नानावती महिला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 4 सितंबर 2023 को राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था- "भक्ति काल और भारतीय समाज"।
संगोष्ठी का उद्घाटन किया मुख्य अतिथि के रूप में एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रोफेसर उज्वला चक्रदेव ने। उन्होंने कहा- यदि हम अपने जीवन में भक्ति के महत्व को समझ लें तो जीवन सफल हो जाएगा। भक्ति या लगन या किसी कार्य के प्रति संपूर्ण निष्ठा- यही तो भक्ति काल के संतों और कवियों ने किया था, जिसका व्यापक प्रभाव पूरे देश की जनता पर पड़ा, जो आज भी अमिट है।
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भक्ति काल में जो साहित्य रचा गया, उसने अन्याय, आतंक और अत्याचार से पीड़ित समाज की जीवन शैली ही परिवर्तित कर दी। जो समाज भय में जीने लगा था, उसे संत और भक्त कवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा साहस और सम्बल प्रदान किया।
संगोष्ठी में बीज वक्ता के रूप में राष्ट्रसंत टुकड़ोजी महाराज विश्वविद्यालय नागपुर से आए डॉ. मनोज कुमार पांडेय ने विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि भक्तिकाल का साहित्य आम जन का साहित्य है, जो कुलीनतावाद से मुक्त है। यही कारण है कि 600 वर्ष से अधिक समय बीत जाने पर भी वह हमारे समाज को दिशा दे रहा है और हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है।
मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय की ट्रस्टी श्रीमती हिमाद्री नानावटी ने महाविद्यालय में इस सेमिनार के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हम अपनी छात्राओं में जो भी ज्ञान बांट सकें, वो कम है। हमारा महाविद्यालय छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए कृत संकल्प है। इस अवसर पर महाविद्यालय के ट्रस्ट की सचिव डॉ. योगिनी शेट भी उपस्थित रहीं।
महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. राजश्री त्रिवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने इस संगोष्ठी के आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संगोष्ठी भक्तिकाल के साहित्य पर एक नए विमर्श को प्रोत्साहित करेगी और विद्यार्थियों के लिए शोध के नए आयामों को विकसित करेगी। एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, भारतीय ज्ञान, संस्कृत एवम योग केंद्र के निदेशक डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने अतिथियों का धन्यवाद देते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान केंद्र भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह के आयोजनों का आयोजन निरंतर करता रहेगा।
इस संगोष्ठी में दो वैचारिक सत्रों में 22 विद्वानों ने अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त दो समांतर सत्रों में 28 शोध पत्रों का वाचन भी किया गया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. केशरी लाल वर्मा ने कहा कि भक्तिकाल का साहित्य भारतीयता की पहचान है। पिछले 700-800 सालों में भारतीय भाषाओं में जो संत और भक्ति साहित्य रचा गया उसने संपूर्ण समाज में जागरूकता फैलाई और उसने जो समाज तैयार किया वही देश के स्वाधीनता संघर्ष की शक्ति बना।
एस एन डी टी महिला विश्वविद्यालय की प्र-कुलगुरु प्रो. रूबी ओझा ने विशिष्ट अतिथि की भूमिका में इस अवसर पर अपने वक्तव्य में कहा कि भक्तिकाल का साहित्य हमारे जीवन का दर्शन है। भारतीय साहित्य में भक्तिकाव्य का स्थान शीर्ष पर है।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुंबई, नागपुर, दिल्ली, अहमदनगर, मिरज, कोपरगांव आदि स्थानों के विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों से आए अध्यापकों और विद्यार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की।
इसमें प्रो. रामबक्ष, डॉ. रतन कुमार पांडेय, डॉ. हूबनाथ, डॉ. वंदना शर्मा, डॉ. दुष्यंत, डॉ. प्रज्ञा शुक्ला, डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार रखे। इस संगोष्ठी में लगभग 115 शोधार्थी, अध्यापक, विद्यार्थी, लेखक एवं विद्वान उपस्थित थे। इस संगोष्ठी के आयोजन में हिंदी, गुजराती, अंग्रेज़ी तथा समाजशास्त्र विभाग के अध्यापकों तथा विद्यार्थियोन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगोष्ठी का कुशल संयोजन किया हिंदी विभाग के अध्यक्ष, डॉ. रवींद्र कात्यायन ने।